कुछ लोग कहते हैं कि, होम्योपैथिक दवाएं अन्य किसी भी तरह की दवा के साथ दी जा सकती हैं! मैं इससे बिलकुल सहमत नहीं हूँ।
पहले हमें समझ लेना चाहिये कि, इलाज की 2 पद्धतियाँ हैं, Curative Treatment और Palliative Management. अर्थात् रोग को जड़ से बाहर कर देने वाली पद्धति और रोग को दबाने वाली पद्धति।
आदर्श उपचार वह है, जो रोग को जड़ से बाहर कर दे और स्थायी आरोग्य प्रदान करे, न कि रोग को दबा दे। क्योंकि कोई भी रोग दबने पर ज्यादा महत्त्वपूर्ण अंग में चला जायेगा और ज्यादा गंभीर रोग का कारण बनेगा। तत्काल तो रोगी को आराम महसूस होगा लेकिन बाद में कई गुना ज्यादा कष्ट भोगना पड़ेगा।
अब देखिये कि होम्योपैथिक इलाज का मतलब ही है आदर्श उपचार, अर्थात् Curative Treatment. यह पद्धति Nature’s Law of Cure, उपचार के प्राकृतिक नियम पर आधारित है। इस इलाज से रोग ऊपर से नीचे, अंदर से बाहर और नए से पुराने की और खिसकता है। यानि कि प्राकृतिक रूप से रोग, जड़ समेत बाहर निकलता है। जबकि Palliative Treatment में बिलकुल इसका उल्टा होता है। एलोपैथी में रोग को दबाने वाली चिकित्सा ही की जाती है और रोग बिलकुल गलत दिशा में खिसकता है। यानि कि “shifting of the disease, happens in wrong direction”.
अब आप ही बताइये, 2 एक दूसरे के विपरीत पद्धतियों का प्रयोग, 1 ही शरीर में, 1 ही साथ, कैसे उचित हो सकता है? जबकि दोनों की क्रिया एक-दूसरे की विपरीत दिशा में होती है।
कुछ विरल परिस्थितियों में मास्टर हैनिमैन ने, Palliative Management की अनुमति दी है, जिसका तात्पर्य तथाकथित मॉडर्न मेडिसन की स्थूल दवाओं से कदापि नहीं है। वास्तव में होम्योपैथीक सूक्ष्म दवाओं से antidote करना भी Palliative Management ही है, लेकिन इससे स्थूल दवाओं की तुलना में कम दुष्प्रभाव होते हैं और इनका प्रभाव लंबे समय तक रहता है।
प्रायोगिक तौर पर देखा गया है कि, जिन रोगियों की वर्तमान रोगवस्था, होम्योपैथिक उपचार से आरोग्य की ओर अग्रसर थी और कोई पुराना दबा हुआ रोग बाहर निकलने लगा (हो सकता है, उसी की वजह से वर्तमान रोग हुआ था), रोगी ने उसे अन्य रोग समझ कर अन्य चिकित्सक से फिर एलोपैथिक दवा ले ली।
उसके कुछ दिनों बाद फिर लौट कर होम्योपैथीक चिकित्सक के पास आया, क्योंकि उसका रोग वापस आ गया था। दुबारा होम्योपैथीक इलाज भी उतनी जल्दी काम नहीं करता, क्योंकि अब रोग और भी ज्यादा जटिल (complicated) हो गया था। इस बार समय और प्रयास और भी ज्यादा लगेगा और आरोग्य लाभ होने की सम्भावना भी क्षीण हो जायेगी।
इसीलिये मेरी सलाह यही है कि, होम्योपैथिक इलाज करवाने से पहले इसे समझें।
अगर आपने अपने शरीर को पूर्णतः रोगमुक्त करने का निर्णय लिया है, यानि शरीर में दबे हुए सभी रोगों को बाहर निकालने का निर्णय लिया है, इतना ही नहीं सूक्ष्म-शरीर के स्तर पर भी विकार रहित करने का निर्णय लिया है, तभी एक अच्छे होम्योपैथीक फिजिशियन से संपर्क करें और एक बार होम्योपैथीक इलाज शुरू करने के बाद अन्य कोई भी दवा नहीं लें। यहाँ तक कि बाहरी प्रयोग वाली दवा या घरेलु इलाज भी। अन्यथा रोग को बाहर निकालने की प्रक्रिया में व्यवधान पड़ेगा, जीवनी शक्ति और भी असंतुलित हो जायेगी तथा रोग और भी जटिल हो जायेगा।
हाँ, कुछ विशेष परिस्थितियों में आपको एलोपैथिक दवाओं को एकबारगी बंद करने की जगह धीरे धीरे छोड़ने की सलाह दी जा सकती है, लेकिन अंततः आपको आत्मनिर्भर ही बनना है, पराश्रित नहीं।
अगर आप धीरज और विश्वास के साथ होमियोपैथी में टिके रहेंगे तो एक एक करके आपके अंदर दबी हुई बीमारियां, परत दर परत बाहर निकल जाएंगी और आने वाली भयंकर बीमारियों से बचाव भी होगा।