अक्सर लोग पूछते हैं कि होमियोपैथी में फलाना रोग की कौन सी दवा है? या फिर यह पूछते हैं कि फलाना रोग का इलाज होमियोपैथी में है या नहीं?
यह समझ लेना चाहिए कि अक्सर जिसे रोग कहा जाता है, वह केवल एक लक्षण या किसी एक अंग से संबंधित लक्षण होते हैं, जबकि रोग का कारण रोगी की जीवनी शक्ति में अव्यवस्था होती है।
होम्योपैथी में किसी भी रोग की कोई भी दवा फिक्स्ड नहीं है।
होम्योपैथी में रोग की दवा खोजने वाले हमेशा असफल रहते हैं। जो रोगी की दवा खोजते हैं, वही सफल होते हैं।
रोग का इलाज करना रोग को दबाना है और आज अधिकांश होमियोपैथ भी यही कर रहे हैं।
इसीलिए एक ही रोग से ग्रसित अलग अलग रोगियों की दवा अलग अलग हो सकती है तथा एक ही दवा अलग अलग रोगों में दी जा सकती है।
अर्थात रोग नहीं रोगी की चिकित्सा की जाती है।
यह निर्भर करता है रोगी के सम्पूर्ण लक्षणों, इतिहास, शारीरिक एवं मानसिक संरचना, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, घरेलू वातावरण, इत्यादि के गहन अध्ययन एवं विश्लेषण पर।
होमियोपैथी में किसी एक रोग की चिकित्सा नहीं की जाती, बल्कि रोगी की सम्पूर्ण चिकित्सा की जाती है।
अर्थात, हर रोग की चिकित्सा है होमियोपैथी में।
अगर रोगी ने होमियोपैथी चिकित्सा लेने में बहुत ही ज्यादा देर कर दी है और उसकी जीवनी शक्ति बहुत ही ज्यादा कमजोर हो चुकी है, तब रोगों को बाहर निकालना संभव नहीं होता।
यह चिकित्सा रोगी के सारे दबे हुए रोगों को बाहर निकालती है, बारी बारी से…
अतः होमियोपैथी से स्थायी समाधान की जगह अस्थायी रोकथाम की अपेक्षा अनुचित है, जो निराशा का कारण ही बनेगी।
इसीलिए होमियोपैथी चिकित्सा प्रारंभ करने के बाद कोई भी अन्य दवा न खानी चाहिए न लगानी चाहिए।
चाहे वो कोई भी अन्य समस्या क्यों न हो, जबतक कि आपका चिकित्सक स्वयं यह सलाह नहीं दे।
अन्यथा रोग जटिल हो जाता है।
कोई भी रोग जैसे कि बुखार, सर्दी, चर्मरोग इत्यादि अंदर से बाहर निकलने पर खुश होना चाहिए और उसे वापस दबाने वाली चिकित्सा नहीं लेनी चाहिए।